मैं और मेरी तनहाई
इस अंधेरे के साए में है हम कैद
उस उजाले की प्यास मे तन्हे।
जिसके लिए ये लंबी रात है थमी
इतनी देर ये जुल्म जिसके लिए है सहे।
ये खामोशियों में भी जो आवाजे है गूंजती
कहती है कि , ' अब तो हमें आजाद करो ,
अब तो हमे पंख फैलाकर उस आसमान को छूने दो। '
मगर फिर भी ये दिल हिम्मत जुटाता नही।
वो मधुर संगीत सुनने की चाह है ,
पूरा पाताल भी जो सुनकर है चहक उठे।
अब ना उनकी मुहब्बत ना ही कोई यादे है हमको सताती ,
जो ये रात ही झूठी आजादी के अब ख्वाब दिखती।
जैसे हो कोई बुरा सपना ,
जिससे जागने की ना कोई उम्मीद ना ही कोई राह हो।
लगता है कि अब इस रास्ते पर हमे अकेले ही चलना है ,
के अंधेरे में परछाई भी साथ छोड़ देती है।
- Shayarlal
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